तंग रास्तों में भटकते हुए, अकस्मात् एक ख़याल आया। मंज़िल तो कभी देखी न थी, रास्ता भी अब खो न जाए कहीं। ये फुटपाथ गरीबों का, और ये सड़क अमीरों की, मेरा क्या है? कुछ भी तो नहीं… मेरे हिस्से में आये हुए, दुःख भी हैं और दर्द भी। सोचा अपनों से परे, क्या पता,Continue reading “मेरा क्या है?”
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मैं एक पौधा हूँ
मैं एक पौधा हूँ… मैं वृक्ष नहीं हूँ, प्रज्ञ हूँ, लगभग अदृश्य भी, किन्तु विशालकाय यक्ष नहीं हूँ. मैं तो सूक्ष्म हूँ, निर्बल हूँ, चंचल हूँ. हवा के तेज़ झोंको से, कंपकपाता हर पल हूँ. कितने प्राणी, कितनी लालसा, मैं तो सबसे डरता हूँ. भान है यथार्थ का, तभी तो निवेदन करता हूँ. न मैंContinue reading “मैं एक पौधा हूँ”